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DAV Class 8 Naitik Shiksha Chapter 8 Question Answer Panch Mahayagya

DAV class 8 Naitik Shiksha chapter 8 question answer Panch Mahayagya are given below to help the students to answer the questions correctly using logical approach and methodology.

Here, we provide complete solutions of DAV Class 8 Naitik Shiksha chapter 8 Panch Mahayagya of Naitik Shiksha Textbook.

These exercise of Naitik Shiksha chapter 8 contains 8 questions and the answers to them are provided in the DAV Class 8 Naitik Shiksha Chapter 8 Question Answer.

DAV Class 8 Naitik Shiksha Chapter 8 Question Answer Panch Mahayagya
DAV Class 8 Naitik Shiksha Chapter 8 Panch Mahayagya

DAV Class 8 Naitik Shiksha Chapter 8 Panch Mahayagya Solutions

DAV Class 8 Naitik Shiksha Chapter 8 Panch Mahayagya Solutions is given below. Here DAV Class 8 Naitik Shiksha Chapter 8 Panch Mahayagya question answer is provided with detailed explanation.

DAV Class 8 students are more likely to score good marks in Naitik Shiksha exam if they practise DAV Class 8 Naitik Shiksha Chapter 8 Panch Mahayagya Question Answer regularly.

Solutions of DAV Class 8 Naitik Shiksha chapter 8 is help to boost the writing skills of the students, along with their logical reasoning.

Students of class 8 can go through Naitik Shiksha chapter 8 Panch Mahayagya solutions to learn an effective way of expressing their answer in the M.ED exam.

चार प्रकार के कर्म कौन-कौन से हैं? उनके नाम और स्वरूप बताओ।

उत्तर: चार प्रकार के कर्म हैं:

  • नित्यकर्म नित्यकर्म प्रतिदिन किए जाने वाले कर्म नित्यकर्म कहलाते हैं।
  • नैमित्तिक कर्म नैमित्तिक कर्म किसी निमित या कारण से किए जाने वाले कर्म अर्थात् पर्व, उत्सव, संस्कार आदि नैमित्तिक कर्म कहलाते हैं।
  • काम्य कर्म काम्य कर्म इच्छा, कामना की पूर्ति के लिए जो कार्य किए जाए उसे काम्य कर्म कहते हैं।
  • निषिद्ध कर्म निषिद्ध कर्म जीव हत्या, धोखा, भ्रष्टाचार आदि निषिद्ध कर्म है। अर्थात् अशुभ कर्म निषिद्ध कर्म कहलाते हैं।

पंच महायज्ञ कौन-कौन से हैं? उनका संबंध किस प्रकार के कर्म से है?

उत्तर: पंच महायज्ञ:

  • ब्रह्मयज्ञब्रह्म यज्ञ का संबंध (अर्थ) संध्या से है। ईश्वर का ध्यान करना, जप करना ब्रह्मयज्ञ कहलाता है।
  • देवयज्ञइस यज्ञ का संबंध पर्यावरण शुद्धि तथा देवताओं की पुष्टि से है। हवन करना, विद्या की वृद्धि करना, सेवा करना देवयज्ञ है।
  • पितृयज्ञ- माता-पिता, सास-ससुर, गुरुजनों एवं सभी बड़ों का सम्मान करना पितृयज्ञ है।
  • अतिथि यज्ञ- घर आये मेंहमान का सम्मान करना, उन्हें भोजन कराना अतिथि यज्ञ कहलाता है।
  • बलि वैश्वदेव यज्ञ- इस यज्ञ को भूत यज्ञ भी कहते हैं। इसका संबंध सभी प्राणियों के कल्याण हेतु किये गए पुण्य से है। जैसे अग्नि में भोज्य पदार्थ की आहुति देना, भोजन से पूर्व खाने के कुछ दाने को निकालकर बाहर रखना, चींटी को आटा देना, पक्षियों को पानी देना आदि बलि वैश्वदेव यज्ञ हैं।

ब्रह्मयज्ञ से क्या अभिप्राय है? इसे किस प्रकार किया जाता है?

उत्तर: ब्रह्म यज्ञ से तात्पर्य ईश्वर का ध्यान, जप, चिंतन आदि से है। इस यज्ञ को पवित्रता के साथ किया जाता है। यह पवित्रता बाह्य और आंतरिक दोनो रूप में होनी चाहिए।

देवयज्ञ में अग्नि के कितने रूप हो जाते हैं?

उत्तर: देवयज्ञ में अग्नि के तीन रूप होते हैं:

  • पहला रूप राख है, जो आहुति की अग्नि के शांत होने पर होता है।
  • दूसरा रूप सुगंध है जो वातावरण में फैल जाता है। अग्नि का यह रूप हवन सामग्री में सम्मिलित होता है।
  • तीसरा रूप अत्यंत सूक्ष्म होता है जिसका संबंध श्रद्धा और विश्वास से है जो हवन के बाद आत्मा और शरीर में घुल जाता है।

देवयज्ञ पर्यावरण से किस प्रकार संबंधित है?

उत्तर: देवयज्ञ का पर्यावरण से सीधा संबंध है। जिस तरह घृत भोजन को सुगंधित, स्वादिष्ट और पुष्टिकारक बनाता है उसी तरह देवयज्ञ में दी जाने वाली आहुति वातावरण को शुद्ध, साफ और स्वास्थ्य बर्धक बनाता है।

अभिवादनशील को किन चार वस्तुओं की प्राप्ति होती है?

उत्तर: अभिवादनशील को आयु, विद्या, यश और बल की प्राप्ति होती है।

पितृ यज्ञ किस प्रकार किया जाता है?

उत्तर: कोई उत्तम स्थान खोजकर वहां भवन बनाना चाहिए। भवन में पितरों को (वृद्धो को), महात्माओं और विद्वानों को बुलाना चाहिए। उनसे वार्तालाप करनी चाहिये। उनके उपदेश पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और प्रसन्न रहना चाहिए।

अतिथि यज्ञ और वलि वैश्वदेव यज्ञ की विधियों का उल्लेख कीजिये।

उत्तर: अतिथि यज्ञ और वलि वैश्वदेव यज्ञ की विधियों का उल्लेख:

अतिथि यज्ञ- यदि कोई व्यक्ति बिन बुलाए बिना सूचना दिए, अपरिचित रूप में घर आ जाए तो उसका स्वागत, सत्कार करना चाहिये, उसे खाने और पीने को देना चाहिए।

बलि वैश्वदेव यज्ञ- सबके लिए प्रार्थना करना, स्वयं भोजन करने से पूर्व यज्ञ की अग्नि में या रसोई के चूल्हे में नमकीन वस्तुओं को छोड़कर मीठा मिले हुए अन्न को उन सब प्राणियों के लिये आहुतियाँ देना जो इस विशाल संसार मे रहते हैं। जैसे चीटियों को आटा, चिड़ियों को चुग्गा पानी आदि देकर सुखी बनाने का यत्न करना।

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